इस बीच रास्ते में आई कई और बेहतर चीजों को तो वो छोड़ता ही है। पर हद तब हो जाती है जब एक सफर के दौरान मिली हुई नदी किसी मंजिल पे पहुंचने के लिए किए जा रहे सफर की उस मंजिल से भी बड़ी हो जाती है। वो उस नदी के ख्याल को लेकर अडिग रहता है सब जानते समझते हुए भी वो जिस जगह पर उतर जाने के ख्याल को लेकर चला होता है वहां उतरने के बजाय वो चलता रहता है कुछ हो जाने के इन्तेज़ार में।
आखिर ट्रेन एक मुहाने पर आकर रुकती है रफ्तार में कमी के साथ उसके नशे में भी कमी आती है वो वापस जाने के लिए वापसी की ट्रेन का इन्तेज़ार करता है पर अचानक आप को उसको पता चलता है अब यहाँ से वापसी का सफर नहीं है इसलिए ही पिछले दस स्टेशन पर चीख चीख कर उतरने की नसीहत पहले ही दी जा चुकी होती है बात सुनते ही वो कुछ पल के लिए सुन्न हो जाता है और तभी वहाँ मौजूद एक शख्स जौन का एक शेर गुनगुनाता है
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उस की उमीद-ए-नाज़ का हम से ये मान था कि आप
उम्र गुज़ार दीजिए उम्र गुज़ार दी गई
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